गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

ज़िन्दगी

ज़िन्दगी को
गन्ने की तरह
चूसने में मुझे मज़ा आता है।

मुझे अच्छा लगता है
तेज़ कुल्हाड़ी से
बहुत पक्की लकड़ी काटना।

मुझे अच्छा लगता है
गाँव की तंग कीचड भरी गली को
ईंट-पत्थर के टुकड़ों से पाटना।

अच्छा लगता है मुझे
हर सुबह
साफ़ दाढ़ी बना लेना।

गर्मी के दिनों में
सूख गयी नदियों कि रेत में
झिरिया खना लेना।

अच्छा लगता है
अगर मेरी रात में भी
कोई चिड़िया चहके।

ज़िन्दगी आस-पास की अगर
किसी जड़ी-बूटी की तरह 
महके।

अच्छा लगता है अगर मैं
अपनी रात को सिरहाने या पैताने
गुडी-मुड़ी करके चाहे जैसा घर पाऊँ !

अच्छा लगता है अगर
नए आये दिन को मैं
आगे बढ़ कर भुजाओं में भर पाऊँ !

- भवानी प्रसाद मिश्र  . 

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