गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

पुराना दिन

तुम वहाँ कैसे हो गुज़रे हुए दिन और साल ?
यह पूछते हुए पुरानी एल्बम के भुरभुरे पन्ने  नहीं पलट रहा हूँ

तुम्हारी आवाज़ आज के नए घर में गूंजती है
और हमारी आज की भाषा को बदल देती है

एक समकालीन वाक्य उतना भी तो समकालीन नहीं है
वह पुरानी लय का विस्तार है
और इतिहास कि शिराओं का हमारी ओर खुलता घाव

वह तुम्हारे विचारों का निष्कर्ष है हमारी आज की मौलिकता
पुराने आंसुओं का नमक आज की हंसी का सौंदर्य

मरा नहीं है वह कोई भी पुराना दिन
राख , धुल और कुहासे के नीचे वह प्रतीक्षा की धड़कन है
गवाही के दिन वह उठ खड़ा होगा
और खिलाफ गवाही के दस्तावेज़ के नीचे दस्तखत करेगा।

- महेश वर्मा  .


कोई टिप्पणी नहीं:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...