शनिवार, 21 दिसंबर 2013

एक दृष्टिकोण

सूरज को सारे खून माफ़ हैं।
दुनिया के हर इंसान का
वह रोज़ एक दिन कतल करता है
और हर एक उम्र का एक टुकड़ा
रोज़ जिबह होता है
इंसान के इख्तियार में सिर्फ इतना है -
कि जिबह हुए टुकड़े को
वह घबरा के फेंक दे, और डरे,
या निडर उसे कबाब की तरह भूने, खाये
और साँसों की शराब पीता
वह अगले टुकड़े का इंतज़ार करे …

- अमृता प्रीतम  .

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