सोमवार, 30 दिसंबर 2013

एक और दिन आएगा

एक और दिन आएगा , एक स्त्रियोचित दिन
अपनी उपमा में स्पष्ट, अस्तित्व में सम्पूर्ण
हीरा परख में , शोभायात्रा जैसा
धूपदार, लचीला, एक हलकी परछाईं के साथ।
किसी को भी नहीं आयेगी छोड़ कर जाने की इच्छा।
सारी चीज़ें अतीत से बाहर की ,
प्राकृतिक और वास्तविक
अपने पुराने लक्षणों की पर्यायवाची होंगी।
जैसे कि समय गहरी नींद सोया हो छुट्टी में   …

एक और दिन आएगा , एक स्त्रियोचित दिन
भंगिमा में गीत जैसा
अभिवादन और वाक्यांश में नीलम।
पानी बहेगा चट्टान के सीने से।
न धूल , न अकाल , न पराजय।
और अगर फाख्ते को प्रेमियों के बिस्तर पर नहीं मिला एक छोटा सा घोंसला
तो वह दोपहर को सोयेगा
एक परित्यक्त कॉम्बैट टैंक के भीतर   …

- महमूद दरवेश  .
फलीस्तीनी कवि
अनुवाद - अशोक पांडे  .

( सदानीरा से साभार )

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