मैंने एक दिन सड़क पर
एक आदमी को देखा
और मुझे लगा मैं इसे जानता हूँ।
'गलत'- मेरे मन ने कहा
तुम इसे नहीं जानते।
जानता हूँ - मैंने कहा
यह वही आदमी है
जो मुझे ट्रेन में मिला था
एकदम गलत - मेरे मन ने फिर कहा
यह वह नहीं है !
है !
नहीं है -
मैं देर तक सोचता रहा
कि तभी मुझे दीखा
उसके धूप भरे चेहरे पर वह चिकना सा द्रव
जो आदमी को पेड़ों से अलग करता है।
वही - वही
यह वही आदमी है -
मैंने खुद से कहा
और बहुत दिनों बाद
मुझे एक ऐसी खुशी हुई
जिसके बारे में किताबों में
मैंने कहीं कुछ नहीं पढ़ा है !
- केदारनाथ सिंह .
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