शनिवार, 15 फ़रवरी 2014

संयोगवश


मैंने एक दिन सड़क पर
एक आदमी को देखा
और मुझे लगा मैं इसे जानता हूँ।

'गलत'- मेरे मन ने कहा
तुम इसे नहीं जानते।

जानता हूँ - मैंने कहा
यह वही आदमी है
जो मुझे ट्रेन में मिला था

एकदम गलत - मेरे मन ने फिर कहा
यह वह नहीं है !

है !
नहीं है -
मैं देर तक सोचता रहा
कि तभी मुझे दीखा
उसके धूप भरे चेहरे पर वह चिकना सा द्रव
जो आदमी को पेड़ों से अलग करता है।

वही - वही
यह वही आदमी है -
मैंने खुद से कहा
और बहुत दिनों बाद
मुझे एक ऐसी खुशी हुई
जिसके बारे में किताबों में
मैंने कहीं कुछ नहीं पढ़ा है !

- केदारनाथ सिंह  . 

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