कि कोई लौट आयेगा ,
पहले होगी क़दमों की आहट ,
फिर दरवाजा खट- खटायेगा .
कैसे उसे ये कोई अब समझाएगा
जो बीत गया है वो
उम्मीद कई दलीलें देगी ,
जिरह करेगी जज्बातों से ;
अब उस से भला कोई
कैसे जीत पायेगा ...
क्या उसको बतलायेगा
कैसे उसको समझाएगा
न क़दमों की आहट होगी
न ही कोई आएगा
कतरा कतरा रिस रहा है
उम्मीद का गहरी रातों में ,
कमली सी वो हो गयी है
उलझी उलझी जज्बातों में ,
कहती है
जब टूटेंगी सांसें
और
अर्थी कोई उठाएगा
तब तो
क़दमों की आहट होगी
तब तो कोई आएगा .
2 टिप्पणियां:
तुम्हारी कविता में उदासी शायद पहली मर्तबा पढ़ रही हूँ . मगर खूबसूरत है .
skand you write so well on every topic.
जो बीत गया है वो
लौट के अब न आयेगा
fir bhi hamein intezaar karney se koi rok thodi sakta hai beautiful
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