सोमवार, 5 मार्च 2012

कोरा कागज़ .





रंगों के इस इंद्रजाल में 
मन का कागज़ कोरा है .


धुल जाते हैं रंग सभी .
या फीके पड़ जाते हैं .
चढ़ कर जो फिर उतरे ना
ऐसा कोई रंग कहाँ !!


रंग बदलती दुनिया में 
कब रंग बदलते रंग नहीं ? 


फिर जब ये ही होना है ,
तो कोरा ही रहने दो ;
सतरंगे जीवन धारे में 
बिना रंगे ...
बहने दो .


जब तक कागज़ कोरा है 
रंगों की गुंजाइश है .
भर जाएगा 
फिर तो शायद 
मटमैला हो जाएगा .


ऐसा कोई मलाल नहीं .
कोरा रह जाए कागज़ 
इतना भी बुरा ख़याल नहीं .


                  - मीता .

4 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 08 -03 -2012 को यहाँ भी है

..रंग की तरंग में होली की शुभकामनायें .. नयी पुरानी हलचल में .

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

जब तक कागज़ कोरा है
रंगों की गुंजाइश है .
भर जाएगा
फिर तो शायद
मटमैला हो जाएगा .
gajab ke bhav...
sundarrachana..
holi ki dher sari shubh kamnaye....

meeta ने कहा…

संगीता जी हार्दिक आभार .
रीना जी आपका धन्यवाद .
होली की आप को भी हार्दिक शुभ कामनाएं .

CHIRANTAN ने कहा…

आपका आभार !

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