कि ये कोई राह है,
और राह है
तो मोड़ भी होंगे...
चलो,
इक साथ चलते हैं .
इक साथ चलते हैं .
न जाने कौन सा मकाम
मेरे नाम लिक्खा है,
न जाने कौन सी मंज़िल
तुम्हारी मुन्तजिर है....
शायद रास्ते के मोड़ को
मालूम है सब कुछ.
ये तुम भी जानते हो
और मैं भी,
और मैं भी,
कि जब भी मोड़ आते हैं
तो रस्ते रुख बदलते हैं.
मगर फिर भी
बिना सोचे
चलो,
इक साथ चलते हैं..
इक साथ चलते हैं..
- मीता .
2 टिप्पणियां:
न जाने कौन सा मकाम
मेरे नाम लिक्खा है,
न जाने कौन सी मंज़िल
तुम्हारी मुन्तजिर है....
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ ...
धन्यवाद संगीता जी.
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