उसी रास्ते के किनारे
उसी मोड़ पर
आज भी एक गीली सी याद लिए
गुज़रती हूँ मैं ...
मगर ना तो अब वहां
वो दरख़्त है
और ना वो पीला पत्ता
हैं तो बस
मेरे होंठों पर
अब भी तुम्हारा नाम .
हाँ उसी मोड़ पर
मैंने एक आशियाना बनाया है
अपनी उम्मीदों का
जहाँ तुम मिलोगे एक रोज़ और कहोगे
" अब भी बारिशों को छूती हो क्या !"
तब मैं
बस इतना कहूंगी
" मेरी आँखों की बरसातों को
बस एक बार , हौले से
तुम छू लो ना."
उसी रास्ते के किनारे
उसी मोड़ पर
अब भी हमारे क़दमों के निशां हैं...
आओ
अगर मुमकिन हो
मिटा जाओ ये निशां
या फिर आओ
कि साथ चलें
दूर तक ...
क़दम क़दम .
- अनन्या .
14 टिप्पणियां:
बहुत भाव प्रवण रचना
जहाँ तुम मिलोगे एक रोज़ और कहोगे
" अब भी बारिशों को छूती हो क्या !"
very stirring words..thanks for sharing this wonderful creation with us ,Ananya keep writing
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 17 -05-2012 को यहाँ भी है
.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....ज़िंदगी मासूम ही सही .
आओ अगर मुमकिन हो
मिटा जाओ ये निशां
या फिर
आओ कि साथ चलें
दूर तक ...
क़दम क़दम .
वाह! सुन्दर!
या फिर आओ
कि साथ चलें
दूर तक ...
क़दम क़दम . ....बहुत सुन्दर
बहुत नाजुक सी, प्रेम में पगी कविता..
सुन्दर रचना....
भावमय शब्द संयोजन ... अनुपम प्रस्तुति।
जहाँ तुम मिलोगे एक रोज़ और कहोगे
" अब भी बारिशों को छूती हो क्या !"
तब मैं
बस इतना कहूंगी
" मेरी आँखों की बरसातों को
बस एक बार , हौले से
तुम छू लो ना."
कितने मधुर अहसासो को पिरोया है।
खुबसूरत रचना....
दिलों की जमीं पे जो हँसते निशाँ हैं
किसी के मिटाने से मिटते कहाँ हैं.
सादर.
बहुत सुन्दर भावमयी रचना....
सुन्दर ,कोमल एहसासों से भरपूर रचना
आओ अगर मुमकिन हो
मिटा जाओ ये निशां
या फिर
आओ कि साथ चलें
दूर तक ...
क़दम क़दम .
...
बहुत बढ़िया रचना
BEAUTIFUL POEM
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